इस मंदिर में जाने के लिए आदमी को भी बनना पड़ता है औरत, वजह कर देगी आपको हैरान!
केरल के चनारा में ‘कट्टंकुलगरा’ मंदिर की अपनी ही एक खास बात है. देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए एक अलग तरह की पूजा इस मंदिर में करी जाती है! हर साल यहाँ ‘चामेइविलक्कु’ के त्योहार के लिए, हजारों लोग इस जगह आते हैं. आश्चर्य की बात ये है की इस त्योहार में पुरुष साड़ी पहनकर महिलाओं की तरह सजते हैं. और देवताओं को प्रसन्न करने के लिए एक दीपक के साथ मंदिर जाते हैं.
ऐसी है इस मंदिर की खासियत
यह एक पारंपरिक विधि है जो सदियों से चलती आ रही है. कुछ पंडितों के अनुसार, कुछ साल पहले इसकी शुरुआत हुई. यंहा छोटे लड़कों को लड़कियों के रूप में सजाया गया था . फिर उनके द्वारा एक पत्थर को फूल चढ़ाकर भोजन का भोग दिया गया था .उसके बाद देवी बच्चों के सामने प्रकट हुई थी. यह बात पुरे शहर में फैल गई, और जल्द ही लोगोंने उस पत्थर के चारों ओर एक मंदिर बनाया. इस पत्थर को भगवन मानकर लोग इसकी पूजा करने लगे. लोगों का ये भी मानना है की इस पत्थर का साइज हर साल थोड़ी मात्रा में बढ़ता है.
विदेशी लोग भी होते हैं इस में शामिल
इस अनोखी परंपरा ने स्त्री-पुरुष भेदभाव, और जाति-धर्म की सारी सीमाओं को तोड़ दिया है. सिर्फ स्थानीय लोग नहीं बल्कि पुरे देश के पुरुष- महिलाऐं और विदेशी लोग भी इस त्योहार में शामिल होने आते हैं. इस परंपरा में शर्म जैसी चीजों की कोई गुंजाइश नहीं है. सारे पुरुष इस त्योहार के लिए रेश्मी कपड़े और चमकीले गहने पहनकर, चेहरे पर मेकअप लगाकर लड़कियों की तरह श्रृंगार करते हैं.
आमतौर पर उन्हें इस तरह तैयार होने के लिए घर की महिलाऐं मदद करती हैं. लेकिन अभी एक नया बिजनेस यहाँ शुरू हुआ है. जहाँ मंदिर के चारों ओर टेम्पररी शैक लगाए होते हैं और कुछ ब्यूटीशिअन्स 500 या 2000 रुपए के प्राइस में पूरा मेकओवर कराके देते हैं.
मंदिर में दर्शन करने का सबसे शुभ समय रात 2 बजे से सुबह 5 बजे के बीच रहता है. लेकिन इस त्योहार की लोकप्रियता के कारण लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है. भारत जैसे पुरुष-प्रधान देश में, इस रिवाज ने निश्चित रूप से लिंग भेद-भाव जैसी चीजों को खत्म कर दिया है.
केरल के चनारा में ‘कट्टंकुलगरा’ मंदिर की अपनी ही एक खास बात है. देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए एक अलग तरह की पूजा इस मंदिर में करी जाती है! हर साल यहाँ ‘चामेइविलक्कु’ के त्योहार के लिए, हजारों लोग इस जगह आते हैं. आश्चर्य की बात ये है की इस त्योहार में पुरुष साड़ी पहनकर महिलाओं की तरह सजते हैं. और देवताओं को प्रसन्न करने के लिए एक दीपक के साथ मंदिर जाते हैं.
ऐसी है इस मंदिर की खासियत
यह एक पारंपरिक विधि है जो सदियों से चलती आ रही है. कुछ पंडितों के अनुसार, कुछ साल पहले इसकी शुरुआत हुई. यंहा छोटे लड़कों को लड़कियों के रूप में सजाया गया था . फिर उनके द्वारा एक पत्थर को फूल चढ़ाकर भोजन का भोग दिया गया था .उसके बाद देवी बच्चों के सामने प्रकट हुई थी. यह बात पुरे शहर में फैल गई, और जल्द ही लोगोंने उस पत्थर के चारों ओर एक मंदिर बनाया. इस पत्थर को भगवन मानकर लोग इसकी पूजा करने लगे. लोगों का ये भी मानना है की इस पत्थर का साइज हर साल थोड़ी मात्रा में बढ़ता है.
विदेशी लोग भी होते हैं इस में शामिल
इस अनोखी परंपरा ने स्त्री-पुरुष भेदभाव, और जाति-धर्म की सारी सीमाओं को तोड़ दिया है. सिर्फ स्थानीय लोग नहीं बल्कि पुरे देश के पुरुष- महिलाऐं और विदेशी लोग भी इस त्योहार में शामिल होने आते हैं. इस परंपरा में शर्म जैसी चीजों की कोई गुंजाइश नहीं है. सारे पुरुष इस त्योहार के लिए रेश्मी कपड़े और चमकीले गहने पहनकर, चेहरे पर मेकअप लगाकर लड़कियों की तरह श्रृंगार करते हैं.
आमतौर पर उन्हें इस तरह तैयार होने के लिए घर की महिलाऐं मदद करती हैं. लेकिन अभी एक नया बिजनेस यहाँ शुरू हुआ है. जहाँ मंदिर के चारों ओर टेम्पररी शैक लगाए होते हैं और कुछ ब्यूटीशिअन्स 500 या 2000 रुपए के प्राइस में पूरा मेकओवर कराके देते हैं.
मंदिर में दर्शन करने का सबसे शुभ समय रात 2 बजे से सुबह 5 बजे के बीच रहता है. लेकिन इस त्योहार की लोकप्रियता के कारण लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है. भारत जैसे पुरुष-प्रधान देश में, इस रिवाज ने निश्चित रूप से लिंग भेद-भाव जैसी चीजों को खत्म कर दिया है.
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